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Saturday, July 24, 2021

पसीने सूखे मेरे


कहीं दिन यूँही न निकल जाए,

यूँही बैठे - बैठे, सोचते - सोचते।

घंटो बैठा मैं देखता रहा,

देखता रहा, दूर घने काले बादल को

जलता रहा, मैं पसीने पोछता रहा,

धूप की गर्मी अपने चरम पर थी,

मैं जलता रहा, पसीने पोछता रहा,

देख दूर घने काले बादल को।

काला बादल मजबूर हुआ,

मेरे प्यार से।

उसने अपनी आँचल फैलाई,

और इधर अंधेरा छा गया।

पसीने सूखे मेरे।


Note - बारिश बुला रहा हूं।

आप भी कभी कभी बुलाइये।

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