Tuesday, August 3, 2021
ज़िन्दगी आस पास
Saturday, July 24, 2021
पसीने सूखे मेरे
कहीं दिन यूँही न निकल
जाए,
यूँही बैठे - बैठे, सोचते - सोचते।
घंटो बैठा मैं देखता रहा,
देखता रहा, दूर घने काले बादल को।
जलता रहा, मैं पसीने पोछता रहा,
धूप की गर्मी अपने चरम पर थी,
मैं जलता रहा, पसीने पोछता रहा,
देख दूर घने काले बादल को।
काला बादल मजबूर हुआ,
मेरे प्यार से।
उसने अपनी आँचल फैलाई,
और इधर अंधेरा छा गया।
पसीने सूखे मेरे।
Note - बारिश बुला रहा हूं।
आप भी कभी कभी बुलाइये।
ज़िन्दगी के बिखरते पन्ने
क्या है ना,
ज़िन्दगी के पन्ने कितना भी समेट लो,
तेज हवा का झोंका चलते रहता है।
धन्य है इंसान जैसे जीव का,
जो अपने आखिरी दम तक पन्ने समेटता रहता
है।
यह जानते हुए, की हवा का झोंका और तेज होना है।
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Poetry
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